क्या मज़ा पर्दा-ए-वहदत में है खुलता नहीं हाल
आप ख़ल्वत में ये फ़रमाइए क्या करते हैं
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कब पान रक़ीबों को इनायत नहीं होते
आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़
एहसान नहीं ख़्वाब में आए जो मिरे पास
मस्तों में फूट पड़ गई आते ही यार के
जर्राह के सामने खोला फोड़ा
शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
हमेशा मय-कदे में ख़ुश-क़दों का मजमा' है
ख़ूब ताज़ीर-ए-गुनाह-ए-इश्क़ है
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
फ़र्ज़ है दरिया-दिलों पर ख़ाकसारों की मदद
सुनती है रोज़ नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-आशिक़ाँ