हमेशा मय-कदे में ख़ुश-क़दों का मजमा' है
हज़ारों सर्व लगे हैं कनार-ए-जू-ए-शराब
Mir Taqi Mir
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कुफ्र-ओ-इस्लाम ने मक़्सद को पहुँचने न दिया
होती है हार जीत पिन्हाँ बात बात में
दुश्मन की मलामत बला है
आते नहीं हैं दीदा-गिर्यां के सामने
मज़मून अगर राह में हाथ आता है
असर कर के आह-ए-रसा फिर गई
वो बहर-ए-करम जो मेहरबाँ हो जाए
किस तरह ख़ुश हों शाम को वो चाँद देख कर
ज़ख़्मी न भूल जाएँ मज़े दिल की टीस के
किब्र भी है शिर्क ऐ ज़ाहिद मुवह्हिद के हुज़ूर
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया