मज़मून अगर राह में हाथ आता है
ख़ामा चलने में ठोकरें खाता है
हाल-ए-ख़त-ए-तक़्दीर खुला आज 'मुनीर'
अपना लिखा पढ़ा नहीं जाता है
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
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झूटी बातें मुझे याद आईं जो उस की शब-ए-हिज्र
हर चंद गुनाहों से हूँ मैं नामा सियाह
कुछ नहीं हासिल सिपर को चीर को या तलवार तोड़
रोज़ दिल-हा-ए-मै-कशाँ टूटे
शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
असर कर के आह-ए-रसा फिर गई
आँखों में खटकती ही रही दौलत-ए-दुनिया
रोज़ दिलहा-ए-मै-कशाँ टूटे
नाज़ुक ऐसा नहीं किसी का पेट
लेटे जो साथ हाथ लगा बोसा-ए-दहन
तेरी फ़ुर्क़त में शराब-ए-ऐश का तोड़ा हुआ
याद उस बुत की नमाज़ों में जो आई मुझ को