रोज़ दिल-हा-ए-मै-कशाँ टूटे
ऐ ख़ुदा जाम-ए-आसमाँ टूटे
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
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मिल मिल गए हैं ख़ाक में लाखों दिल-ए-रौशन
ख़ाकसारी से जो ग़ाफ़िल दिल-ए-ग़म्माज़ हुआ
दुश्मन की मलामत बला है
बे फ़ाएदा रखता नहीं सर हाथों पर
मुंडेरों पर छिड़क दे अपने कुश्तों का लहू ऐ गुल
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
तेरे हाथों से मिटेगा नक़्श-ए-हस्ती एक दिन
हमेशा मय-कदे में ख़ुश-क़दों का मजमा' है
काबे से मुझ को लाए सवाद-ए-कुनिश्त में
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
जलसों में गुज़रने लगी फिर रात तुम्हारी
दिल ले के पलकें फिर गईं ज़ुल्फ़ों की आड़ में