बे-फ़ाएदा रखता नहीं सर हाथों पर
सर पर जो है हाथ इस में है लुत्फ़-ए-दिगर
आक़ा के सलाम-ओ-नज़र की हसरत में
रहता हूँ 'मुनीर' सर-ब-कफ़-ओ-दस्त-बसर
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(612) Peoples Rate This
कुफ्र-ओ-इस्लाम ने मक़्सद को पहुँचने न दिया
लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में
और मुझ सा जान देने का तमन्नाई नहीं
राह कर के उस बुत-ए-गुमराह ने धोका दिया
बोसा-ए-लब ग़ैर को देते हो तुम
असर कर के आह-ए-रसा फिर गई
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
ऐ बुत जो शब-ए-हिज्र में दिल थाम न लेते
इन रोज़ों लुत्फ़-ए-हुस्न है आओ तो बात है
उम्र बाक़ी राह-ए-जानाँ में बसर होने को है
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
झूटी बातों की तजल्ली नज़र आए ऐसे