लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में
देख लो जलता है कोना चादर-ए-महताब का
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ज़ख़्मी न भूल जाएँ मज़े दिल की टीस के
अब के बहार-ए-हुस्न-ए-बुताँ है कमाल पर
दुश्मन की मलामत बला है
फोड़े ने सफ़र में सख़्त घबराया है
पहुँचा है उस के पास ये आईना टूट के
हमारी रूह जो तेरी गली में आई है
नमाज़ शुक्र की पढ़ता है जाम तोड़ के शैख़
कोठे पे चेहरा-ए-पुर-नूर दिखाया सर-ए-शाम
वो ज़ुल्फ़ हवा से मुझे बरहम नज़र आई
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
भटके फिरे दो अमला-ए-दैर-ओ-हरम में हम
सुनती है रोज़ नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-आशिक़ाँ