सब ने लूटे उन के जल्वे के मज़े
शर्बत-ए-दीदार जूठा हो गया
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में
ऐ बुत ये है नमाज़ कि है घात क़त्ल की
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
अब के बहार-ए-हुस्न-ए-बुताँ है कमाल पर
अपने आक़ा की हर घड़ी याद में हूँ
बरहमन का'बे में आया शैख़ पहूँचा दैर में
हाथ मलवाती हैं हूरों को तुम्हारी चूड़ियाँ
सब्ज़ा तुम्हारे रुख़ के लिए तंग हो गया
शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
मैं रोता हूँ आह-ए-रसा बंद है
जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
किब्र भी है शिर्क ऐ ज़ाहिद मुवह्हिद के हुज़ूर