सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए
एक टक्कर मार कर सर फोड़ या दीवार तोड़
Ahmad Faraz
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Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
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सख़्ती-ए-दहर हुए बहर-ए-सुख़न में आसाँ
सब्ज़ा तुम्हारे रुख़ के लिए तंग हो गया
और मुझ सा जान देने का तमन्नाई नहीं
कुफ्र-ओ-इस्लाम ने मक़्सद को पहुँचने न दिया
आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़
दुश्मन की मलामत बला है
सुनती है रोज़ नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-आशिक़ाँ
बे-इल्म शाइरों का गिला क्या है ऐ 'मुनीर'
मुंडेरों पर छिड़क दे अपने कुश्तों का लहू ऐ गुल
अशआ'र मेरे सुन के वो ख़ामोश हो गया
हाथ मलवाती हैं हूरों को तुम्हारी चूड़ियाँ
पेच फ़िक़रे पर किया जाता नहीं