सदमे से बाल शीशा-ए-गर्दूँ में पड़ गया
तुम ने दिखाई कोठे पर अपनी कमर किसे
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शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
इन रोज़ों लुत्फ़-ए-हुस्न है आओ तो बात है
कभी पयाम न भेजा बुतों ने मेरे पास
देखा है आशिक़ों ने बरहमन की आँख से
कुछ नहीं हासिल सिपर को चीर को या तलवार तोड़
दुश्मन की मलामत बला है
दीदार का मज़ा नहीं बाल अपने बाँध लो
मेरी शम-ए-अंजुमन में गुल है गुल में ख़ाक है
क्यूँकर शिकार-ए-हुस्न न खेलें यहाँ के लोग
कुफ्र-ओ-इस्लाम ने मक़्सद को पहुँचने न दिया
अक्स-ए-रुख़-ए-गुलगूँ से तमाशा नज़र आया
जान देता हूँ मगर आती नहीं