बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
ख़ुद-ब-ख़ुद हर ज़ख़्म का अंगूर मीठा हो गया
Allama Iqbal
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Parveen Shakir
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Gulzar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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दुश्मन की मलामत बला है
कोठे पे चेहरा-ए-पुर-नूर दिखाया सर-ए-शाम
मुंडेरों पर छिड़क दे अपने कुश्तों का लहू ऐ गुल
फ़स्ल-ए-बहार आई है पैमाना चाहिए
जिस रोज़ मैं गिनता हूँ तिरे आने की घड़ियाँ
तारीफ़ रोज़ लेते हो अपने ग़ुरूर की
मुज़्तरिब आशिक़-ए-बे-जाँ न हुआ था सो हुआ
ज़िंदा-ए-जावेद हैं मारा जिन्हें उस शोख़ ने
फोड़े ने सफ़र में सख़्त घबराया है
रोज़ दिल-हा-ए-मै-कशाँ टूटे
फ़ौज-ए-मिज़्गाँ का कुछ इरादा है
सख़्ती-ए-दहर हुए बहर-ए-सुख़न में आसाँ