ज़िंदा-ए-जावेद हैं मारा जिन्हें उस शोख़ ने
बर-तरफ़ जो हो गए उन की बहाली हो गई
Allama Iqbal
Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
अबरू की तेरी ज़र्ब-ए-दो-दस्ती चली गई
कुफ्र-ओ-इस्लाम में तौलें जो हक़ीक़त तेरी
जब हम-बग़ल वो सर्व क़बा पोश हो गया
सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने
दश्त-ए-वहशत में नहीं मिलता है साया काँपता
हाल-ए-पोशीदा खुला सामान-ए-इबरत देख कर
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
ख़ाकसारी से जो ग़ाफ़िल दिल-ए-ग़म्माज़ हुआ
आँखों में खटकती ही रही दौलत-ए-दुनिया
आमद तसव्वुर-ए-बुत-ए-बेदाद-गर की है
मज़मून अगर राह में हाथ आता है