जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
ऐ बरहमन मुझ को बैतुल्लाह ने धोका दिया
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(281) Peoples Rate This
मज़मून अगर राह में हाथ आता है
वहशत में बसर होते हैं अय्याम-ए-शबाब आह
वो ज़ुल्फ़ हवा से मुझे बरहम नज़र आई
जाती है दूर बात निकल कर ज़बान से
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
गालियाँ ज़ख़्म-ए-कुहन को देख कर देती हो क्यूँ
तारीफ़ रोज़ लेते हो अपने ग़ुरूर की
उस बुत के नहाने से हुआ साफ़ ये पानी
हमारी रूह जो तेरी गली में आई है
दम भर रहे हबाब-ए-नमत काएनात में
पड़ गई जान जो उस तिफ़्ल ने पत्थर मारे
ऐ रश्क-ए-माह रात को मुट्ठी न खोलना