जाती है दूर बात निकल कर ज़बान से
फिरता नहीं वो तीर जो निकला कमान से
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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सब्ज़ा तुम्हारे रुख़ के लिए तंग हो गया
मुझ को अपने साथ ही तेरे सुलाने की हवस
साबित रहा फ़लक मिरे नालों के सामने
उस बुत के नहाने से हुआ साफ़ ये पानी
की तर्क मैं ने शैख़-ओ-बरहमन की पैरवी
जान देता हूँ मगर आती नहीं
मैं रोता हूँ आह-ए-रसा बंद है
ख़ूबान-ए-फुसूँ-गर से हम उलझा नहीं करते
विर्द-ए-इस्म-ए-ज़ात खोला चाहता है ये गिरह
अक्स-ए-रुख़-ए-गुलगूँ से तमाशा नज़र आया
फ़र्ज़ है दरिया-दिलों पर ख़ाकसारों की मदद
उस्ताद के एहसान का कर शुक्र 'मुनीर' आज