झूटी बातें मुझे याद आईं जो उस की शब-ए-हिज्र
सुब्ह-ए-काज़िब को मैं पेशानी-ए-क़ातिल समझा
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बे-इल्म शाइरों का गिला क्या है ऐ 'मुनीर'
ऐ रश्क-ए-माह रात को मुट्ठी न खोलना
कुफ्र-ओ-इस्लाम ने मक़्सद को पहुँचने न दिया
सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए
ग़म सहते हैं पर ग़म्ज़ा-ए-बेजा नहीं उठता
है ईद लाओ मय-ए-लाला-फ़ाम उठ उठ कर
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
रोज़ दिलहा-ए-मै-कशाँ टूटे
साबित रहा फ़लक मिरे नालों के सामने
मैं रोता हूँ आह-ए-रसा बंद है
फोड़े ने सफ़र में सख़्त घबराया है
मिल मिल गए हैं ख़ाक में लाखों दिल-ए-रौशन