पड़ गई जान जो उस तिफ़्ल ने पत्थर मारे
आज जुगनू की तरह हर शरर-ए-संग उड़ा
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
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Allama Iqbal
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
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दुनिया से दाग़-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम ले गया
हल्क़ा हल्क़ा घर बना लख़्त-ए-दिल-ए-बेताब का
मुझ को अपने साथ ही तेरे सुलाने की हवस
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
रोज़ दिल-हा-ए-मै-कशाँ टूटे
करते हैं मस्जिदों में शिकवा-ए-मस्ताँ ज़ाहिद
चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से
मुज़्तरिब आशिक़-ए-बे-जाँ न हुआ था सो हुआ
खाते हैं अंगूर पीते हैं शराब
हाथ मिलवाते हो तरसाए गिलौरी के लिए
ख़ाकसारी से जो ग़ाफ़िल दिल-ए-ग़म्माज़ हुआ
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना