एहसान नहीं ख़्वाब में आए जो मिरे पास
चोरी की मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं है
Jaun Eliya
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लगाईं ताक के उस मस्त ने जो तलवारें
शब के हैं माह मेहर हैं दिन के
कुफ्र-ओ-इस्लाम में तौलें जो हक़ीक़त तेरी
सख़्त-जानी का सही अफ़्साना है
हो गया हूँ मैं नक़ाब-ए-रू-ए-रौशन पर फ़क़ीर
वो ज़ुल्फ़ हवा से मुझे बरहम नज़र आई
का'बे से मुझ को लाई सवाद-ए-कुनिश्त में
सब्ज़ा तुम्हारे रुख़ के लिए तंग हो गया
सरसों जो फूली दीदा-ए-जाम-ए-शराब में
सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए
वहशत में बसर होते हैं अय्याम-ए-शबाब आह
आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़