कब पान रक़ीबों को इनायत नहीं होते
किस रोज़ मिरे क़त्ल का बेड़ा नहीं उठता
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झूटी बातें मुझे याद आईं जो उस की शब-ए-हिज्र
आशिक़ बना के हम को जलाते हैं शम्अ'-रू
तिरछी नज़र से देखिए तलवार चल गई
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने
सरसों जो फूली दीदा-ए-जाम-ए-शराब में
अबरू की तेरी ज़र्ब-ए-दो-दस्ती चली गई
खाते हैं अंगूर पीते हैं शराब
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
सख़्ती-ए-दहर हुए बहर-ए-सुख़न में आसाँ
बे-वक़्त जो घर से वो मसीहा निकल आया
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया