आशिक़ बना के हम को जलाते हैं शम्अ'-रू
परवाना चाहिए उन्हें परवाना चाहिए
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
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कुछ नहीं हासिल सिपर को चीर को या तलवार तोड़
पहुँचा है उस के पास ये आईना टूट के
लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में
होती है हार जीत पिन्हाँ बात बात में
हर चंद गुनाहों से हूँ मैं नामा सियाह
सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए
उलझा है मगर ज़ुल्फ़ में तक़रीर का लच्छा
आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़
जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
फ़ौज-ए-मिज़्गाँ का कुछ इरादा है
क्यूँकर शिकार-ए-हुस्न न खेलें यहाँ के लोग
करता है बाग़-ए-दहर में नैरंगियाँ बसंत