उलझा है मगर ज़ुल्फ़ में तक़रीर का लच्छा
सुलझी हुई हम ने न सुनी बात तुम्हारी
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(343) Peoples Rate This
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
बिगड़ी हुई है सारी हसीनों की बनावट
कहते हैं सब देख कर बेताब मेरा उज़्व उज़्व
आशिक़ बना के हम को जलाते हैं शम्अ'-रू
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
कलकत्ता को डाक में चला हूँ जो मैं आह
लेटे जो साथ हाथ लगा बोसा-ए-दहन
आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
पड़ गई जान जो उस तिफ़्ल ने पत्थर मारे
मस्तों में फूट पड़ गई आते ही यार के
मैं रोता हूँ आह-ए-रसा बंद है
तारीफ़ रोज़ लेते हो अपने ग़ुरूर की