जर्राह के सामने खोला फोड़ा
मीज़ान-ए-नज़र में उस ने तोला फोड़ा
फोड़े की जगह बग़ल में देखे जो 'मुनीर'
सब कहने लगे दिल का फफोला फोड़ा
Gulzar
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गर्मी-ए-हुस्न की मिदहत का सिला लेते हैं
हर चंद गुनाहों से हूँ मैं नामा सियाह
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
करते हैं मस्जिदों में शिकवा-ए-मस्ताँ ज़ाहिद
पड़ गई जान जो उस तिफ़्ल ने पत्थर मारे
पेच फ़िक़रे पर किया जाता नहीं
जब कभी मस्की कटोरी क्या सदा पैदा हुई
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
रिंदों को पाबंदी-ए-दुनिया कहाँ
कभी पयाम न भेजा बुतों ने मेरे पास
राह में सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा रहता हूँ
उसी हूर की रंगत उड़ी रोने से हमारे