उसी हूर की रंगत उड़ी रोने से हमारे
रंग-ए-गुल-ए-फ़िरदौस भी कच्चा नज़र आया
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ग़म सहते हैं पर ग़म्ज़ा-ए-बेजा नहीं उठता
राह कर के उस बुत-ए-गुमराह ने धोका दिया
बे फ़ाएदा रखता नहीं सर हाथों पर
करता रहा लुग़ात की तहक़ीक़ उम्र भर
सख़्ती-ए-दहर हुए बहर-ए-सुख़न में आसाँ
झूटी बातें मुझे याद आईं जो उस की शब-ए-हिज्र
आस्तीन-ए-सब्र से बाहर न निकलेगा अगर
हमेशा मय-कदे में ख़ुश-क़दों का मजमा' है
कोठे पे चेहरा-ए-पुर-नूर दिखाया सर-ए-शाम
और मुझ सा जान देने का तमन्नाई नहीं
आमद तसव्वुर-ए-बुत-ए-बेदाद-गर की है
सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने