करता रहा लुग़ात की तहक़ीक़ उम्र भर
आमाल-नामा नुस्ख़ा-ए-फ़रहंग हो गया
Javed Akhtar
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Wasi Shah
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Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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जर्राह के सामने खोला फोड़ा
तेरी फ़ुर्क़त में शराब-ए-ऐश का तोड़ा हुआ
कुफ्र-ओ-इस्लाम ने मक़्सद को पहुँचने न दिया
बे-इल्म शाइरों का गिला क्या है ऐ 'मुनीर'
गालियाँ ज़ख़्म-ए-कुहन को देख कर देती हो क्यूँ
दस बीस हर महीने में अबरू नज़र पड़े
जब कभी मस्की कटोरी क्या सदा पैदा हुई
हल्क़ा हल्क़ा घर बना लख़्त-ए-दिल-ए-बेताब का
मज़मून अगर राह में हाथ आता है
जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
पहुँचा है उस के पास ये आईना टूट के
फ़र्ज़ है दरिया-दिलों पर ख़ाकसारों की मदद