मैं जुस्तुजू से कुफ़्र में पहुँचा ख़ुदा के पास
का'बे तक इन बुतों का मुझे नाम ले गया
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
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कुछ नहीं हासिल सिपर को चीर को या तलवार तोड़
गर्मी-ए-हुस्न की मिदहत का सिला लेते हैं
रिंदों को पाबंदी-ए-दुनिया कहाँ
होती है हार जीत पिन्हाँ बात बात में
तारीफ़ रोज़ लेते हो अपने ग़ुरूर की
सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने
मुंडेरों पर छिड़क दे अपने कुश्तों का लहू ऐ गुल
उसी हूर की रंगत उड़ी रोने से हमारे
जर्राह के सामने खोला फोड़ा
तेग़-ए-अबरू के मुझे ज़ख़्म-ए-कुहन याद आए
लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में
जब बढ़ गई उम्र घट गई ज़ीस्त