मुनीर शिकोहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनीर शिकोहाबादी (page 5)
नाम | मुनीर शिकोहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Muneer Shikohabadi |
जन्म की तारीख | 1814 |
मौत की तिथि | 1880 |
तिरछी नज़र से देखिए तलवार चल गई
तेरे हाथों से मिटेगा नक़्श-ए-हस्ती एक दिन
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
शब के हैं माह मेहर हैं दिन के
सख़्त-जानी का सही अफ़्साना है
सब्ज़ा तुम्हारे रुख़ के लिए तंग हो गया
साबित रहा फ़लक मिरे नालों के सामने
रोज़ दिलहा-ए-मै-कशाँ टूटे
राह में सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा रहता हूँ
राह कर के उस बुत-ए-गुमराह ने धोका दिया
क़ैदी हूँ सर-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पहले
पेच फ़िक़रे पर किया जाता नहीं
पहुँचा है उस के पास ये आईना टूट के
नाज़ुक ऐसा नहीं किसी का पेट
नशे में सहवन कर ली तौबा
मुज़्तरिब आशिक़-ए-बे-जाँ न हुआ था सो हुआ
मेरी शम-ए-अंजुमन में गुल है गुल में ख़ाक है
मैं रोता हूँ आह-ए-रसा बंद है
क्यूँकर शिकार-ए-हुस्न न खेलें यहाँ के लोग
कुछ नहीं हासिल सिपर को चीर को या तलवार तोड़
ख़ूबान-ए-फुसूँ-गर से हम उलझा नहीं करते
ख़ाकसारी से जो ग़ाफ़िल दिल-ए-ग़म्माज़ हुआ
करता है बाग़-ए-दहर में नैरंगियाँ बसंत
काबे से मुझ को लाए सवाद-ए-कुनिश्त में
जुदाई के सदमों को टाले हुए हैं
जो ज़ौक़ है कि हो दरयाफ़्त आबरू-ए-शराब
जलसों में गुज़रने लगी फिर रात तुम्हारी
जब हम-बग़ल वो सर्व क़बा पोश हो गया
होती है हार जीत पिन्हाँ बात बात में
हाथ मलवाती हैं हूरों को तुम्हारी चूड़ियाँ