मैं अगर चुप हूँ ये बहता हुआ दरिया क्या है
लब-कुशा हूँ तो मिरी बात से पहले क्या था
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दर्द का नाम पता मत पूछो
कहानियाँ तमाम शब
कभी हँस रहा था कभी गा रहा था
जब मैं अपने अंदर झाँक रहा था
तिफ़्ल-ए-आरज़ू
याद फिर आई तिरी मौसम सलोना हो गया
सदा ज़-फ़ैज़-ए-असर ख़ामुशी न बन जाए
ये कैसा खेल है अब उस से बात भी कर लूँ
इक ख़्वाब थी ज़िंदगी हमारी
तजरबा-गाह
कोई बीमार पड़ जाए तो अच्छा कैसे करते हो
अजनबी