तेरी इस्मत में हमें शक नहीं ऐ माया-ए-नाज़
पर करें क्या जो न समझे दिल-ए-बद-ज़न अपना
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Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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छुआ हो अगर मैं ने काकुल को तेरी
इतना जो हम से रहते हो बेगाना मेरी जान
अब ख़ुदा मग़फ़िरत करे उस की
गिर्या दिल को न सू-ए-चश्म बहाओ
शब तबक़ में आसमाँ के गिर पड़े थे मेरे अश्क
नमली और न दूदी है न मंशारी है
किसी के हाथ तो लगता नहीं है इक अय्यार
अज़-बस-कि तू प्यारा है मुझे तेरे सिवा यार
उम्र सय्याद की गुज़री इसी जासूसी में
पटरे धरे हैं सर पर दरिया के पाट वाले
बोइए मज़रा-ए-दिल में जो इनायात के बीज
नहीं करती असर फ़रियाद मेरी