देख ऐ शख़्स मुझे यूँ न गिरफ़्तार समझ
यार की क़ैद में हूँ तू तो मुझे यार समझ
इश्क़ के पाँव पड़ा और उसे अर्ज़ करे
साहिबा अब तो मुझे अपना तरफ़-दार समझ
मैं ने सीखा है उसे देख कर रस्ता होना
लोग कहते हैं कि दीवार को दीवार समझ
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हालत-ए-हाल में आदाब नहीं भूलता मैं
अजीब हूँ कि मोहब्बत शनास हो कर भी
मैं खुजूरों भरे सहराओं में देखा गया हूँ
दिल मुब्तला-ए-हिज्र रिफ़ाक़त में रह गया
मोहब्बत, हिज्र, नफ़रत मिल चुकी है
सारे सवाल आसान हैं मुश्किल एक जवाब
तमाम उम्र जले और रौशनी नहीं की
कुछ इस लिए भी अकेला सा हो गया हूँ 'नदीम'
माँगते माँगते दुआ मिरे साथ
मैं लौ में लौ हूँ, अलाव में हूँ अलाव 'नदीम'
सफ़र की धूल को चेहरे से साफ़ करता रहा