दिल मुब्तला-ए-हिज्र रिफ़ाक़त में रह गया

दिल मुब्तला-ए-हिज्र रिफ़ाक़त में रह गया

लगता है कोई फ़र्क़ मोहब्बत में रह गया

इस घर के दो मकीन थे इक पेड़ और मैं

ये हिज्र तो किसी की शरारत में रह गया

इक बार मनअ' करती हुई शाम से तो पूछ

जो भी जुदा हुआ वो हक़ीक़त में रह गया

मुमकिन था तुझ को छीन ही लेता जहान से

लेकिन मैं क्या करूँ मैं मोहब्बत में रह गया

अब तू ही मेरी ख़ाली हथेली की लाज रख

मुझ से तो कोई फ़र्क़ इबादत में रह गया

तुझ पर है कोई ज़ोम न ख़ुद पर यक़ीं 'नदीम'

कुछ दिन का हम में प्यार तो आदत में रह गया

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In Hindi By Famous Poet Nadeem Bhabha. is written by Nadeem Bhabha. Complete Poem in Hindi by Nadeem Bhabha. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.