मोहब्बत ने अकेला कर दिया है
मैं अपनी ज़ात में इक क़ाफ़िला था
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देख ऐ शख़्स मुझे यूँ न गिरफ़्तार समझ
कुछ इस लिए भी अकेला सा हो गया हूँ 'नदीम'
जैसा हूँ जिस हाल में हूँ अच्छा हूँ मैं
मोहब्बत, हिज्र, नफ़रत मिल चुकी है
माँगते माँगते दुआ मिरे साथ
वक़्त की तरह तिरे हाथ से निकले हुए हैं
हर एक साँस पे धड़का कि आख़िरी तो नहीं
हालत-ए-हाल में आदाब नहीं भूलता मैं
आँख उठा कर तुझे देखा न पुकारा मैं ने
सफ़र की धूल को चेहरे से साफ़ करता रहा
हिज्र हूँ पूरा हिज्र हूँ इश्क़ विसाल करे
दिल मुब्तला-ए-हिज्र रिफ़ाक़त में रह गया