बद-नसीबी कि इश्क़ कर के भी
कोई धोका नहीं हुआ मिरे साथ
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जैसा हूँ जिस हाल में हूँ अच्छा हूँ मैं
मोहब्बत लाज़मी है मानता हूँ
दिल मुब्तला-ए-हिज्र रिफ़ाक़त में रह गया
राब्ता मुझ से मिरा जोड़ दिया करता था
मैं खुजूरों भरे सहराओं में देखा गया हूँ
मैं ऐसे मोड़ पर अपनी कहानी छोड़ आया हूँ
एक सुख़न को भूल कर एक कलाम था ज़रूर
हिज्र हूँ पूरा हिज्र हूँ इश्क़ विसाल करे
अजीब हूँ कि मोहब्बत शनास हो कर भी
हम ग़ुलामी को मुक़द्दर की तरह जानते हैं
माँगते माँगते दुआ मिरे साथ