हम ग़ुलामी को मुक़द्दर की तरह जानते हैं
हम तिरी जीत तिरी मात से निकले हुए हैं
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(489) Peoples Rate This
मोहब्बत लाज़मी है मानता हूँ
रूह हाज़िर है मिरे यार कोई मस्ती हो
बहुत शिद्दत से जो क़ाएम हुआ था
एक सुख़न को भूल कर एक कलाम था ज़रूर
दिल मुब्तला-ए-हिज्र रिफ़ाक़त में रह गया
सारे सवाल आसान हैं मुश्किल एक जवाब
कुछ इस लिए भी अकेला सा हो गया हूँ 'नदीम'
वक़्त की तरह तिरे हाथ से निकले हुए हैं
और कोई पहचान मिरी बनती ही नहीं
मोहब्बत ने अकेला कर दिया है
अजीब हूँ कि मोहब्बत शनास हो कर भी
तमाम उम्र जले और रौशनी नहीं की