सब लुत्फ़ है ख़ाक-ए-ज़िंदगी का
हो ख़ाना ख़राब आशिक़ी का
हर वक़्त की ज़िद बुरी है देखो
कहना भी किया करो किसी का
यूँ दाद वो देते हैं वफ़ा की
ये काम नहीं है आदमी का
दिलकश न हों क्यूँ 'नसीम' के शेर
शागिर्द है 'दाग़'-देहलवी का
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उन के पैकान पे पैकान चले आते हैं
मुँह मेरी तरफ़ है तो नज़र ग़ैर की जानिब
बेताब हैं किसी की निगाहें नक़ाब में
अपनी महफ़िल में मुझे देख के कहता है वो बुत
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है
ज़िक्र-ए-दुश्मन है नागवार किसे
यूँही गर अदू की ग़ुलामी करेंगे
आप वो सब की जान लेते हैं
सीधा सच्चा तुम्हें ऐ जान-ए-जहाँ जाने कौन
दिखाए मोजज़े गर वो बुत-ए-अय्यार चुटकी में
होंगे दिल-ओ-जिगर में निशाँ देख लीजिए
दे दें अभी करे जो कोई ख़ूब-रू पसंद