अपनी महफ़िल में मुझे देख के कहता है वो बुत
क्यूँ मिरे घर में मुसलमान चले आते हैं
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ग़ैर के घर बन के डाली जाएगी
शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती
क्या ख़ाक कहूँ मतलब-ए-दिलदार के आगे
जहाँ में अभी यूँ तो क्या क्या न होगा
सब लुत्फ़ है ख़ाक-ए-ज़िंदगी का
दे दें अभी करे जो कोई ख़ूब-रू पसंद
ग़ैर के घर हैं वो मेहमान बड़ी मुश्किल है
होंगे दिल-ओ-जिगर में निशाँ देख लीजिए
नाला-ए-दिल कमाल का निकला
दिखाए मोजज़े गर वो बुत-ए-अय्यार चुटकी में
आप वो सब की जान लेते हैं