कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं
कुछ तल्ख़ी-ए-हालात का एहसास हुआ है
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मैं ने माना आप ने सब कुछ भुला डाला मगर
वो ज़ुल्म भी अब ज़ुल्म की हद तक नहीं करते
क़ल्ब-ए-वारफ़्ता मोहब्बत में कहीं ऐसा न हो
सर-ए-महशर अगर पुर्सिश हुई मुझ से तो कह दूँगा
तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है
ग़ुंचों के तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते
मैं हूँ तिरी निगाह में तू है मिरी निगाह में
इस लिए जफ़ाओं पर मुझ को मुस्कुराना था
न अरमाँ ले के आया हूँ न हसरत ले के आया हूँ
एक धुँदला सा सितारा भी बहुत होता है