तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है
जब तारों भरी रात का एहसास हुआ है
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ग़ुंचों के तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते
क़ल्ब-ए-वारफ़्ता मोहब्बत में कहीं ऐसा न हो
मैं हूँ तिरी निगाह में तू है मिरी निगाह में
एक धुँदला सा सितारा भी बहुत होता है
किसी के इश्क़ में ये हाल-ए-ज़ार रहता है
सर-ए-महशर अगर पुर्सिश हुई मुझ से तो कह दूँगा
वो ज़ुल्म भी अब ज़ुल्म की हद तक नहीं करते
न अरमाँ ले के आया हूँ न हसरत ले के आया हूँ
इस लिए जफ़ाओं पर मुझ को मुस्कुराना था
मैं ने माना आप ने सब कुछ भुला डाला मगर