वो ज़ुल्म भी अब ज़ुल्म की हद तक नहीं करते
आख़िर उन्हें किस बात का एहसास हुआ है
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तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है
कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं
किसी के इश्क़ में ये हाल-ए-ज़ार रहता है
मानूस हो चुके हैं तिरे आस्ताँ से हम
क़ल्ब-ए-वारफ़्ता मोहब्बत में कहीं ऐसा न हो
मैं ने माना आप ने सब कुछ भुला डाला मगर
ग़ुंचों के तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते
इस लिए जफ़ाओं पर मुझ को मुस्कुराना था
एक धुँदला सा सितारा भी बहुत होता है
हुस्न माइल ब-सितम हो तो ग़ज़ल होती है
मैं हूँ तिरी निगाह में तू है मिरी निगाह में