Ghazals of Nasir Zaidi

Ghazals of Nasir Zaidi
नामनासिर ज़ैदी
अंग्रेज़ी नामNasir Zaidi
जन्म की तारीख1943
जन्म स्थानLahore

वो रोब-ए-हुस्न था उस का सलाम भूल गया

वो मिरे ग़म का मुदावा नहीं होने देता

वो एक शख़्स कि जिस से शिकायतें थीं बहुत

तुम तो औरों पे न पत्थर फेंको

तुझ से मिलूँगा फिर कभी ख़्वाब-ओ-ख़याल भी नहीं

थोड़ा सा मुस्कुरा के निगाहें मिलाइए

शौक़-ए-दिल-ए-वारफ़्ता का इक सैद-ए-ज़बूँ हूँ!

रूह-ए-एहसास है तही-दामन

रात सुनसान है गली ख़ामोश

फूल सहरा में खिला दे कोई

मिसाल-ए-सादा-वरक़ था मगर किताब में था

कह रही है ये क्या सबा कुछ सोच

कभी भूले से मुमकिन हो मिरी जानिब अगर होना

जो मेरी आख़िरी ख़्वाहिश की तर्जुमाँ ठहरी

जानिब-ए-दश्त कभी तुम भी निकल कर देखो

इस तवक़्क़ो पे खुला रक्खा गरेबाँ अपना

एहसास के शरर को हुआ देने आऊँगा

दयार-ए-शौक़ में कोसों कहीं हवा भी नहीं

बुझी है आग मगर इस क़दर ज़ियादा नहीं

भला कब तक कोई तन्हा रहेगा

आँखों में चुभ रही है गुज़रती रुतों की धूप

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