ज़िंदगी मुख़्तसर मिली थी हमें
हसरतें बे-शुमार ले के चले
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बहुत ही दिल-नशीं आवाज़-ए-पा थी
मुझ को मुआफ़ कीजिए रिंद-ए-ख़राब जान के
दुनिया कहीं जो बनती है मिटती ज़रूर है
इक बे-क़रार दिल से मुलाक़ात कीजिए
उलझे तो सब नशेब-ओ-फ़राज़-ए-हयात में
सब कुछ सर-ए-बाज़ार जहाँ छोड़ गया है
आबादियों में दश्त का मंज़र भी आएगा
हाए कैसी वो शाम होती है
ज़ंजीर-ए-जुनूँ कुछ और खनक हम रक़्स-ए-तमन्ना देखेंगे
आग इक और लगा देंगे हमारे आँसू
ख़ुद मिट के मोहब्बत की तस्वीर बनाई है