इक बे-क़रार दिल से मुलाक़ात कीजिए
जब मिल गए हैं आप तो कुछ बात कीजिए
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ज़ंजीर-ए-जुनूँ कुछ और खनक हम रक़्स-ए-तमन्ना देखेंगे
सब कुछ सर-ए-बाज़ार जहाँ छोड़ गया है
पहले तो डर लगा मुझे ख़ुद अपनी चाप से
दीदा-ए-अश्क-बार ले के चले
न मंदिर में सनम होते न मस्जिद में ख़ुदा होता
सब कुछ सर-ए-बाज़ार-ए-जहाँ छोड़ गया है
मुझ को मुआफ़ कीजिए रिंद-ए-ख़राब जान के
ज़िंदगी मुख़्तसर मिली थी हमें
जहाँ तक याद-ए-यार आती रहेगी
ख़ैर माँगी जो आशियाने की
उलझे तो सब नशेब-ओ-फ़राज़-ए-हयात में