करना है शाइरी अगर 'नौशाद'
'मीर' का कुल्लियात याद करो
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दुनिया कहीं जो बनती है मिटती ज़रूर है
जहाँ तक याद-ए-यार आती रहेगी
अपनी तदबीर न तक़दीर पे रोना आया
आबादियों में दश्त का मंज़र भी आएगा
सब कुछ सर-ए-बाज़ार-ए-जहाँ छोड़ गया है
मुझ को मुआफ़ कीजिए रिंद-ए-ख़राब जान के
पहले तो डर लगा मुझे ख़ुद अपनी चाप से
इक बे-क़रार दिल से मुलाक़ात कीजिए
दीदा-ए-अश्क-बार ले के चले
ज़िंदगी मुख़्तसर मिली थी हमें
बहुत ही दिल-नशीं आवाज़-ए-पा थी