ज़वाल-ए-अज़्मत-ए-इंसाँ का मर्सिया हूँ मैं

ज़वाल-ए-अज़्मत-ए-इंसाँ का मर्सिया हूँ मैं

सर-ए-कशीदा पे दस्तार-ए-बे-अना हूँ मैं

सग-ए-ज़माना से आगे निकल गया हूँ मैं

अब अपने सामने तन्हा खड़ा हुआ हूँ मैं

मिरे वजूद में दर आया कैसा सन्नाटा

कि रेग-ज़ार में गुम-गश्ता इक सदा हूँ मैं

डुबो न दे कहीं मुझ को भी तिश्नगी का सफ़र

कि रेग रेग सराबों का सिलसिला हूँ मैं

इधर से हो के कोई मेहरबाँ हवा गुज़रे

दयार-ए-हब्स में सदियों से घुट रहा हूँ मैं

जिसे मिली है सज़ा हर्फ़-ए-हक़ सुनाने की

सलीब-ए-लब पे वो ठहरी हुई सदा हूँ मैं

खड़ा हुआ हूँ हरीफ़ों में सर झुकाए हुए

कि अपने आप से अब के बहुत जुदा हूँ मैं

न कोई अक्स-ए-मुनव्वर न मंज़र-ए-ख़ुश-रंग

ये कैसे ख़्वाब के बिस्तर पे सो रहा हूँ मैं

अजीब आँधी है ये जिस्म-ओ-जाँ की आँधी भी

मुझे सँभाल बिखरने से डर रहा हूँ मैं

कभी न छू सकी बाब-ए-असर दुआ मेरी

अजीब क़हर-ए-मुसलसल में मुब्तला हूँ मैं

मुझे बरसने की तौफ़ीक़ दे मिरे अल्लाह

कि अब्र बन के ज़माने पे छा गया हूँ मैं

न छू सकी मुझे हिर्स-ओ-हवस की परछाईं

ख़ुदा का शुक्र क़नाअ'त से आश्ना हूँ मैं

रफ़ूगरान-ए-हुनर 'नाज़' बे-नमक थे मगर

फिर अपने ज़ख़्म को शादाब देखता हूँ मैं

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In Hindi By Famous Poet Naz Quadri. is written by Naz Quadri. Complete Poem in Hindi by Naz Quadri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.