हम वो दरख़्त हैं कि जिसे दम-ब-दम अजल
अर्रह इधर दिखाती है ऊधर तबर क़ज़ा
Wasi Shah
Habib Jalib
Anwar Masood
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Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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Mohsin Naqvi
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हो के मह वो तो किसी और का हाला निकला
रुख़ परी चश्म परी ज़ुल्फ़ परी आन परी
मुझे इस झमक से आया नज़र इक निगार-ए-रा'ना
पैसा
ईद
उस के शरार-ए-हुस्न ने शोअ'ला जो इक दिखा दिया
उसी का देखना है ढानता दिल
देख उसे रंग-ए-बहार ओ सर्व ओ गुल और जूएबार
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
तू है वो गुल ऐ जाँ कि तिरे बाग़ में है शौक़
जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है