हम हाल तो कह सकते हैं अपना प कहें क्या
जब वो इधर आते हैं तो तन्हा नहीं आते
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(292) Peoples Rate This
दिल की बे-ताबी ठहरने नहीं देती मुझ को
कल उस के चेहरे को हम ने जो आफ़्ताब लिखा
यूँ तो हम कुछ न थे पर मिस्ल-ए-अनार-ओ-महताब
है दसहरे में भी यूँ गर फ़रहत-ओ-ज़ीनत 'नज़ीर'
ग़श खा के गिरा पहले ही शोले की झलक से
ये हस्ब-ए-अक़्ल तो कोई नहीं सामान मिलने का
जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब
कई दिन से हम भी हैं देखे उसे हम पे नाज़ ओ इताब है
तिरी क़ुदरत की क़ुदरत कौन पा सकता है क्या क़ुदरत
जिसे मोल लेना हो ले ले ख़ुशी से
क़त्ल पर बाँध चुका वो बुत-ए-गुमराह मियाँ
हम ऐसे कब थे कि ख़ुद बदौलत यहाँ भी करते क़दम नवाज़िश