जिसे मोल लेना हो ले ले ख़ुशी से
मैं इस वक़्त दोनों जहाँ बेचता हूँ
Habib Jalib
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गले से दिल के रही यूँ है ज़ुल्फ़-ए-यार लिपट
होली
रहे जो शब को हम उस गुल के सात कोठे पर
कुछ और तो नहीं हमें इस का ओजब है अब
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
हम ऐसे कब थे कि ख़ुद बदौलत यहाँ भी करते क़दम नवाज़िश
देखे न मुझे क्यूँकर अज़-चश्म-ए-हिक़ारत-ऊ
पस उस के गए सिपर जो हम कर सीना
तदबीर हमारे मिलने की जिस वक़्त कोई ठहराओगे तुम
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
अव्वलन उस बे-निशाँ और बा-निशाँ को इश्क़ है
रुख़ परी चश्म परी ज़ुल्फ़ परी आन परी