जिस काम को जहाँ में तू आया था ऐ 'नज़ीर'
ख़ाना-ख़राब तुझ से वही काम रह गया
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कूचे में उस के बैठना हुस्न को उस के देखना
शोर आहों का उठा नाला फ़लक सा निकला
हूँ तेरे तसव्वुर में मिरी जाँ हमा-तन-चश्म
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
ईद
बेजा है रह-ए-इश्क़ में ऐ दिल गिला-ए-पा
ईसा की क़ुम से हुक्म नहीं कम फ़क़ीर का
निकले हो किस बहार से तुम ज़र्द-पोश हो
तोड़े हैं बहुत शीशा-ए-दिल जिस ने 'नज़ीर' आह
कल मिरे क़त्ल को इस ढब से वो बाँका निकला
रखता है गो क़दीम से बुनियाद आगरा
जाँ भी ब-जाँ है हिज्र में और दिल फ़िगार भी