जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
सच तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
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मरता है जो महबूब की ठोकर पे 'नज़ीर' आह
दिल न लो दिल का ये लेना है न इख़्फ़ा होगा
नहीं हवा में ये बू नाफ़ा-ए-ख़ुतन की सी
तुझे कुछ भी ख़ुदा का तर्स है ऐ संग-दिल तरसा
कुछ हम को इम्तियाज़ नहीं साफ़ ओ दुर्द का
नज़र पड़ा इक बुत-ए-परी-वश निराली सज-धज नई अदा का
ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो
लो न हँस हँस के तुम अग़्यार से गुल-दस्तों से
हम हाल तो कह सकते हैं अपना प कहें क्या
अल्ताफ़ बयाँ हों कब हम से ऐ जान तुम्हारी सूरत के
न दिल में सब्र न अब दीदा-ए-पुर-आब में ख़्वाब
सामान दीवाली का