महबूब ने पैरहन में जब इत्र मला
और पान चबा के अपने घर से वो चला
हम ने ये कहा न जाओ बाहर ऐ जाँ
है शाम क़रीब हँस दिया कह के भला
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(701) Peoples Rate This
धुआँ कलेजे से मेरे निकला जला जो दिल बस कि रश्क खा कर
मुखड़े को जो उस के हम ने जा कर देखा
कल जो रुख़-ए-अ'रक़-फ़िशाँ यार ने टुक दिखा दिया
मियाँ दिल तुझे ले चले हुस्न वाले
दिल ठहरा एक तबस्सुम पर कुछ और बहा ऐ जान नहीं
दामान-ओ-कनार अश्क से कब तर न हुए आह
लेता है जान मेरी तो में सर-ब-दस्त हूँ
क्या दिन थे वो जो वाँ करम-ए-दिल-बराना था
अश्कों के तसलसुल ने छुपाया तन-ए-उर्यां
ख़याल-ए-यार सदा चश्म-ए-नम के साथ रहा
हो किस तरह न हम को हर दम हवा-ए-मतलब
जाम न रख साक़िया शब है पड़ी और भी