अश्कों के तसलसुल ने छुपाया तन-ए-उर्यां
ये आब-ए-रवाँ का है नया पैरहन अपना
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कई दिन से हम भी हैं देखे उसे हम पे नाज़ ओ इताब है
तिरी क़ुदरत की क़ुदरत कौन पा सकता है क्या क़ुदरत
क्यूँ नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बे-ख़बर
देख उसे रंग-ए-बहार ओ सर्व ओ गुल और जूएबार
देख अक़्द-ए-सुरय्या हमें अंगूर की सूझी
ये हुस्न है आह या क़यामत कि इक भभूका भभक रहा है
बैठे हैं अब तो हम भी बोलोगे तुम न जब तक
मैं दस्त-ओ-गरेबाँ हूँ दम-ए-बाज़-पुसीं से
भरे हैं उस परी में अब तो यारो सर-ब-सर मोती
जो तुम ने पूछा तो हर्फ़-ए-उल्फ़त बर आया साहिब हमारे लब से
हों क्यूँ न बुतों की हम को दिल से चाहें
कहा ये आज हमें फ़हम ने सुनो साहिब