हों क्यूँ न बुतों की हम को दिल से चाहें
हैं नाज़-ओ-अदा में उन को क्या क्या राहें
दिल लेने को सीने से लिपट कर क्या किया
डाले हैं गले में पतली पतली बाहें
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
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Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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सुनो मैं ख़ूँ को अपने साथ ले आया हूँ और बाक़ी
न इतना ज़ुल्म कर ऐ चाँदनी बहर-ए-ख़ुदा छुप जा
अबस मेहनत है कुछ हासिल नहीं पत्थर-तराशी से
क्या हाल अब उस से अपने दिल का कहिए
पान उस के लबों पे इस क़दर है ज़ेबा
कौन याँ साथ लिए ताज-ओ-सरीर आया है
मज़मून-ए-सर्द-मेहरी-ए-जानाँ रक़म करूँ
अंदाज़ कुछ और नाज़-ओ-अदा और ही कुछ है
लावे ख़ातिर में हमारे दिल को वो मग़रूर क्या
उसी की ज़ात को है दाइमन सबात-ओ-क़याम
जो तुम ने पूछा तो हर्फ़-ए-उल्फ़त बर आया साहिब हमारे लब से
गो सफ़ेदी मू की यूँ रौशन है जूँ आब-ए-हयात