पान उस के लबों पे इस क़दर है ज़ेबा
हो रंग पे जिस के सुर्ख़ी-ए-लाल फ़िदा
हर फ़ुंदुक़-ए-अंगुश्त से उस दस्त को गर
गुल-दस्ता-ए-बाग़-ए-हुस्न कहिए तो बजा
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(618) Peoples Rate This
गो सफ़ेदी मू की यूँ रौशन है जूँ आब-ए-हयात
कल मिरे क़त्ल को इस ढब से वो बाँका निकला
जब उस की ज़ुल्फ़ के हल्क़े में हम असीर हुए
गए थे मिलने को शायद झिड़क दिया उस ने
जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल
दिल की बे-ताबी ठहरने नहीं देती मुझ को
वो चाँदनी में जो टुक सैर को निकलते हैं
ख़फ़ा देखा है उस को ख़्वाब में दिल सख़्त मुज़्तर है
चाह में उस की दिल ने हमारे नाम को छोड़ा नाम किया
हम देख के तुम से रुख़-ए-आराम मियाँ
कुछ हम को इम्तियाज़ नहीं साफ़ ओ दुर्द का
हूँ तेरे तसव्वुर में मिरी जाँ हमा-तन-चश्म